Wednesday 31 October 2012

मत पूछ मेरे सब्र की इन्तेहा कहाँ तक है;
तु सितम कर ले, तेरी ताक़त जहाँ तक है;
व़फा की उम्मीद जिन्हें होगी, उन्हें होगी;
हमें तो देखना है, तू ज़ालिम कहाँ तक है!

आज मनमोहन सरकार कठपुतली बन गयी ह इसकी डोर आज बड़े लोगो के हाथ में ह और बेचारे गरीब को इस सरकार से अब उमीद नहीं आम आदमी की सुनने वाले अब इस देश की सता हासिल नहीं कर सकते ये सरकार तो पेसे वालों की जेब तक सिमित हो  गयी ह !
              बापू ने  शायद ही सोचा होगा कि मेरे नाम कि आड़ में ये लोग ऐसा भारत का निर्माण करेंगे! गांधीजी ने १९४७ में एक दीप हिंदुस्तान को दिया कि अब म रहू या न  रहू पर ये दिया तो मेरे हिंदुस्तान को रोशन कर ही देगा घर घर में ये दिया उज्जाला लायेगा पर हुवा क्या ये देश के दलाल इस देश को आज कुछ लोगों का गुलाम बना कर रख दिया जो इसकी डोर चाहे जेसे हिलाए वेसे ही हिलती ह कोई वजूद इस देश  में छोड़ा नहीं ये हो क्या गया मेरे बापू के देश को ! किसकी नजर लगी ह कुछ तो करना ही होगा,नज़र तो उत्तारनी ही होगी और ये देश कि जनता यानि आम आदमी ही उतार सकता ह खास तो इसमें युवा कि भूमिका बहुत जरुरी ह!
                में केजरीवाल और उनकी टीम को शुक्रगुजार करता हूँ जो इस देश को इन सब बातों से अवगत कराया वर्ना हम तो इस मामले में बिलकुल ही अनपद ही थे !
                वा रे मनमोहन जी केसा प्रधानमन्त्री ह इस देश का इतनी सब सुनने के बाद भी सीट के चिपक कर बैठा ह और सुनता भी ह तो केवल भ्र्स्ताचारियों कि और पेसे वालों कि वास्तव में मोन मोहन ह !

रामचंद्र कह गए सिया से, ऐसा कलयुग आयेगा;
लोग हगेंगे खुले मैदान में, नेता लैट्रिन का पैसा खायेगा!

में हूँ, आम आदमी!     मक्खन लाल पूनिया 

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