कप कपाते हुए होंठों की शिकायत सुन ले;
आज इज़हारे ख़यालात का मौका दे दे;
हम तेरे शहर में आये हैं, मुसाफिर की तरह!
हसरतों पर रिवाजों का सख्त पहरा है;
न जाने कौन सी उम्मीद पर जाकर, यह दिल ठहरा है;
मेरी आँखों में से छलकते हुए यह अश्क और गम की कसम;
मेरा यह प्यार, बहुत गहरा है!
आपने नज़र से नज़र कब मिला दी;
हमारी ज़िन्दगी झूमकर मुस्कुरा दी;
जुबां से तो हम कुछ भी न कह सके;
पर निगाहों ने दिल की कहानी सुना दी!
अगर जिंदगी में जुदाई न होती;
तो कभी किसी की याद न आई होती;
अगर साथ गुजरा होता, हर लम्हा;
तो सायद रिस्तो में इतनी, गहराई न होती!
बदलना आता नहीं हमको मौसम की तरह;
हम हर एक रूप में तेरा इंतज़ार करते हैं;
न समेट सकोंगी तुम इसे क़यामत की तरह;
कसम तुम्हारी हम तुम्हें इतना प्यार करते हैं!
मक्खन
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