Friday 7 December 2012

सत्य मेव जयते : संसद में कुछ और वास्तविक कुछ और !

सत्य मेव जयते : संसद में कुछ और वास्तविक कुछ और !: संसद में कुछ और  वास्तविक कुछ और !   इस देश में नेताओं के दाँत भी हाथी के दाँत की तरह से खाने के और दिखाने के और है ; संसद चल रही थी सुषमा ...

Makkhan Lal Poonia

संसद में कुछ और वास्तविक कुछ और !

संसद में कुछ और  वास्तविक कुछ और !  इस देश में नेताओं के दाँत भी हाथी के दाँत की तरह से खाने के और दिखाने के और है ; संसद चल रही थी सुषमा जी ने ज्यों ही भाषण ख़त्म किया एक उम्र खाया व्यक्ति भाषण देना शुरू किया उन्होंने बड़े ही गर्म जोश में कहा "आप कपिल साहब अच्छे वकील है ,आप अच्छी वकालात भी कर लेते है ,लेकिन हमारा जहाँ तक अनुभव है ये FDI भारत के लिए बहुत ही खतरनाक है !सो हमारी राय यही है कि आप ये किसान विरोधी नीतियों को यहाँ ना लायें ! हम इसका साफ़ साफ़ विरोध करते है !
                                            कुछ देर बाद एक महाशय और खड़े हुए और खूब गरम जोश में FDI का विरोध किया वो थे बहन मायावती के पार्टी से, देखने में ऐसा लग रहा था पूरे देश की चिंता इन्ही पार्टियों को है बार बार सांसद संख्या से दुखी मुलायम जी ने इस देश के सामने क्या ड्रामा किया देखने लायक था ,
                      अंत में वोटिंग के समय पता चला कि मुलायम और मायावती की पार्टी तो वोटिंग ही नहीं कर रही तो फिर संसद में ये भाषण किस लिए ,क्यों आम आदमी को भ्रमित किया जा रहा है ,क्यों किसी का समय बर्बाद करने लगे है ये नेता देश की सेवा तो ये लोग नहीं कर सकते पर जनता के साथ ये किस तरह का मजाक है !
                                                           मेरे विचार से इस संसद में कुछ भी ये नेता तय नहीं करते सब कुछ पहले से तय होता है केवल जनता को दिखने के लिए ये सब किया जाता है !ये चोर चोर मौसेरे भाई है ! इन सब को विदेशी  कम्पनियों ने खरीद लिया है !अब जनता से वोट मांगने पर न जाने क्या -क्या बहाने बनायेंगे !
                                     भाई अरविन्द केजरीवाल ने सच ही कहा है कि ये सब जनता को भ्रमित कर रहे है बाकी सब ये एक ही है ! मुलायम और माया तो करते भी क्या अगर विपक्ष में वोटिंग करते तो सीबीआई से कौन बचाए  और सीबीआई कांग्रेस की एजेंसी तो फिर संसद में बहस की जरूरत कहाँ थी   

                                                                                                      में हूँ ,आम आदमी !
                                                                                                       मक्खन लाल पूनिया 

Monday 3 December 2012

गाँधी जी का अहिंसा वादी भारत

Makkhan Lal Poonia
गाँधी जी का अहिंसा वादी भारत :- दादाजी जी की वो बात आज भी मुझे अच्छी तरह से याद है , में बहुत बार याद करके मन ही मन में गर्व महशुश करता हूँ कि मुझे भी अहिंसा वादी दादाजी के संस्कार मिले !
                                                         बात उन दिनों की ह जब गाँव में लोग फसल काट कर अपने खेत से घर लाते थे , ज्यादातर लोग अपनी फसल बेल गाड़ी या भेंसा गाड़ी या फिर ऊँट गाड़ी से लाते थे , में भी दादाजी के साथ खेत में गया हूवा था जिसे हम फ़िलहाल देव नगर (भांड याली ) के नाम से जानते है , शाम के लगभग 6:00 का समय था ,चारों और से पक्षियों की आवाज सुनाई दे रही थी ,  हम भी हमारे गाँव (गुंगारा ) में प्रवेश किया ,दादाजी गाड़ी के पीछे चल रहे थे, में उनके साथ था , गाँव में एक बुजरग  वक्ती अपने घर से बहार निकला और दादाजी को को गाली बक दी ,  दादाजी ने पहले तो ध्यान से सुना और और फिर उस बुजरग वक्ती को बोले " देख वो , कशोक बोल्यो हे , कोई बात कोनि , आज्या  चिलम पील , उसके गाली बोलने पर भी दादाजी ने बिलकुल घुसा नहीं किया और उसको सामान दिया ! ये सुनते ही वो वक्ति शर्मिंदा हो कर अपने घर में घुस गया , वहां पर खड़े कई लोग देखते ही रह गए ! उस दिन बाद वो वक्ती दादाजी के सामने आने से भी शर्मिंदा होता था !
                                                                                ये शब्द बोलने के पीछे उस वक्ति का कारण ये था कि मेरे बड़े भैया और उस वक्ति का लड़का दोनों एक साथ रहते थे और शाम को देर तक घर नहीं लोटते थे  और वो मेरे भाई की वजह से दादाजी को गाली दे रहा था !
                                 एसी बहुत  सी बात मेरे दादाजी में थी , जेसे दादाजी कहीं भी जाते तो रास्ते में सभी से राम - राम करके चलते थे कभी भी किसी का बुरा नहीं सोचते थे और तो  और रास्ते में पड़ी छड़ी को भी  रास्ते वो हटाये बगेर नहीं चलते थे !
                                                                                               

                                                                                                                                               में हूँ ! आम आदमी !
                                                                                                                                            मक्खन लाल पूनिया